शिक्षा की ज्योति # शॉर्ट स्टोरी चैलेंज #समाजिक
#शार्ट स्टोरी चैलेंज
कहानी - शिक्षा की ज्योति
जॉनर - सामाजिक
शिक्षा पर सबका अधिकार है। चाहे वह आदमी हो या औरत। हमारा समाज किसी को भी शिक्षा से दूर नहीं रख सकता। किन्तु फिर भी समाज में ऐसी बहुत सी कुरीतियां व्याप्त हैं जो औरतों को शिक्षा से दूर रखना चाहती हैं। उन्हें आगे बढ़ने का मौका नहीं देना चाहती।
पर सरगम जैसी बहुत सी ऐसी लड़कियां हैं जो इन कुरितियों के खिलाफ आवाज़ उठा अपना मार्ग स्वयं बनाती हैं।
सरगम एक बहुत ही छोटे से गांव में रहती थी। वहां लड़कियों को केवल प्रारंभिक शिक्षा ही प्रदान की जाती थी। गाँव में विद्यालय नहीं थे। सरगम कुछ बनना चाहती थी। शिक्षा प्राप्त कर अपने माता पिता को गरीबी की दलदल से निकालना चाहती थी। उसके माता पिता भी अपनी बेटी को पढ़ाना चाहते थे। पर गाँव में स्कूल नही थे।
सरगम के पिता को पता चला कि पंद्रह किलोमीटर दूर एक छोटे से शहर में सरकार लड़कियों की शिक्षा के लिए विद्यालय खोल रही है। सरगम के पिता ने झट अपनी होनहार बेटी का नाम वहां दर्ज करा दिया।
गाँव के लोगों को जब यह बात पता चली तो सब उसपर बरस पड़े। उसे समाज के नियम कानून समझाने लगे कि लड़कियों को ज़्यादा पढ़ाया नहीं जाता। लड़कियां केवल चूल्हा-चौका ही करती अच्छी लगती हैं। पर सरगम के पिता ने किसी की एक नहीं सुनी। उन्होंने बहुत विनम्रतापूर्वक वहां के सरपंच से कहा,
"मैं अपनी बेटी को उच्च शिक्षा देना चाहता हूँ। जिससे वह अपनी ज़िंदगी को एक बेहतर ढंग से जी सके। और साथ ही जब वह कुछ बन जाएगी तो इस गाँव का भी भला हो जाएगा।"
सरपंच ने ताना मारते हुए कहा,"हमें ना चाहिए तुम्हारी बेटी द्वारा किया भला। अब तुम्हें नहीं समझ में आ रही तो हम क्या कर सकते हैं। पर हमसे किसी तरह की कोई उम्मीद मत रखना। हम साथ नहीं देंगे तुम्हारा इस काम में।"
सरपंच और गाँव के लोगों ने एक तरह से सरगम के पिता का बहिष्कार ही कर दिया। पर इससे उसके पिता के हौसले पस्त नहीं हुए। वह रोज़ तड़के उठ सरगम को अपनी साइकिल पर बैठा पंद्रह किलोमीटर दूर उस शहर के स्कूल में पढ़ने के लिए छोड़कर आता था।
समय बीतने लगा। सरगम भी मन लगा कर पढ़ रही थी। उसके पिता ने भी अपनी सब्जियां उसी शहर में बेचना आरंभ कर दिया। वह सरगम को लेकर रोज़ सुबह अपनी सब्जियां साथ लेकर जल्दी निकलता और दोपहर को सरगम उसके पास मंडी पहुंच जाती। वहीं बैठ अपनी पढ़ाई करती और शाम को अपने पिता के साथ ही वापस आती।
दूसरी तरफ उसकी मां अकेले ही अपने खेत देखती। आंखों में केवल एक ही सपना था, बिटिया को डॉक्टर बनाने का।
समय बीतने लगा। बारहवीं के रिज़ल्ट की घोषणा हुई। सरगम ने अपने विद्यालय में ही नहीं बल्कि उस पूरे ज़िले में सबसे ज़्यादा अंक प्राप्त किए। अखबारों में सरगम का नाम आया। उसने अपने गाँव का नाम रौशन कर दिया। पर गाँव वालों को उसकी ये कामयाबी पसंद नहीं आई। पूरे ज़िले में उसका सम्मान हुआ पर गाँव में नहीं।
सरगम ने खूब मेहनत की और उसे दिल्ली के प्रसिद्ध मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिल गया। वहां के एक हॉस्टल में उसने कमरा ले लिया। सरगम के माता पिता को बहुत गर्व हुआ अपनी बेटी पर । आखिरकार उसकी मेहनत और उनकी दुआएं काम आईं। सरगम बहुत अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हुई।
"सरपंच जी, ये लीजिए मिठाई। सरगम बिटिया डॉक्टर बन गयी।" सरगम के पिता ने मिठाई का डिब्बा सरपंच को पकड़ाते हुए कहा।
सरपंच ने डिब्बा फैंकते हुए कहा,"तेरी बेटी की देखा देखी गाँव की और लड़कियों के भी पर निकल आए हैं। सब अपने मां बाप से पढ़ने की ज़िद्द कर रही हैं।"
"तो ये तो अच्छी बात है। लड़कियों को भी पढ़ने का हक है।" सरगम के पिता ने कहा।
"तो गांँव के रीति रिवाज को ताक पर रख अब हम लड़कियों को पढ़ाई लिखाई करवाएं। देखो भाई, अभी तक बर्दाश्त कर लिया पर अब नहीं। तुम लोग यहां से कहीं और चले जाओ। वरना….और भी रास्ते हैं।" सरपंच ने सरगम के पिता को धमकी देते हुए कहा।
जब सरगम को यह बात पता चली तो उसने तुरंत अपने माता पिता को अपने पास बुला लिया। गाँव का घर और खेत बेच दिए।
"बाबा हमें ऐसे घटिया सोच रखने वाले लोगों के पास नहीं रहना। अब आप आराम करो, मैं हूं ना।"
समय बीतने लगा। अचानक एक दिन सरगम ने अपने हॉस्पिटल में अपने गाँव के सरपंच को देखा। पर उसने उनके सामने जाना उचित नहीं समझा।
ओतभी उसके सीनियर डॉक्टर ने उसे बुलाया।
"डॉक्टर सरगम, एक केस आया है। किडनी बुरी तरह खराब हो चुकी है। अर्जेंट ऑपरेशन करना पड़ेगा। आप चेक अप कर लीजिए।"
सरगम जब वार्ड में पहुंची तो पता चला कि वह सरपंच का बेटा था। शराब और सिगरेट की लत ने उसकी किडनी को बुरी तरह खराब कर दिया था। एक किडनी निकालनी बहुत ज़रूरी थी।
सरगम को देखते ही सरपंच चौंक गए। वह घबरा गये कि कहीं सरगम दुश्मनी ना निकाल बैठे।
"बेटा, बीती बातें भूल जाओ। उसकी वजह से मेरे बेटे के ऑपरेशन में कोई…" सरपंच बोल ही रहे थे कि
सरगम बीच में उन्हें टोकते हुए बोली,"सरपंच जी, पढ़ाई लिखाई हमें बदला, ईर्ष्या, जलन की भावना से ऊपर उठना सिखाती है। और एक डॉक्टर होने के नाते मेरे लिए मरीज़ की जान बचाने से ज़्यादा ज़रूरी कुछ भी नहीं है। आप निश्चिंत रहें।"
सरपंच अपनी घटिया सोच पर बहुत शर्मिन्दा हुआ। एक तरफ सरगम है जिसने यहां तक पहुंचने के लिए क्या कुछ नहीं झेला, और एक तरफ उनका बेटा है जिसे सब सुख सुविधाएं मिलीं पर वो आज नशे की वजह से अपनी किडनी खोने जा रहा है।
ऑपरेशन सफल रहा। सरपंच ने सरगम का दिल आभार व्यक्त किया और अपनी ग़लती की क्षमायाचना की।
"सरपंच जी यदि आप सच में पश्चाताप करना चाहते हैं तो गाँव में लड़कियों को पढ़ने लिखने की आज़ादी दीजिए। आज लड़कियां हर क्षेत्र में अपना वर्चस्व कायम कर रही हैं। डॉक्टरी, इंजीनियरिंग, आर्किटेक्ट, पायलट, बस ड्राइवर, रेल संचालक, राजनीति, यहां तक की आर्मी भी। गाँव की हर लड़की को यह अधिकार होना चाहिए कि वह भी शहर की लड़कियों की तरह नये आयाम स्थापित करें। अपने गाँव का नाम रौशन करें।" सरगम ने विनम्रतापूर्वक निवेदन करते हुए कहा।
"सही कहा तुमने सरगम बिटिया। अब ऐसा ही होगा।" सरपंच ने उससे वादा करते हुए कहा।
आज सरगम के गाँव की हर लड़की पढ़- लिख रही है और लगभग हर क्षेत्र में अपना और अपने गाँव का नाम रोशन कर रही है। शिक्षा की ज्योति हरतरफ प्रज्वलित हो रही थी।
🙏
आस्था सिंघल
#शार्ट स्टोरी चैलेंज
Haaya meer
06-May-2022 05:29 PM
👌👌
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Astha Singhal
06-May-2022 06:10 PM
🙏🙏🙏
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Muskan khan
06-May-2022 05:11 PM
Very nice
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Astha Singhal
06-May-2022 06:11 PM
Thanks
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Sachin dev
06-May-2022 04:59 PM
Nice
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Astha Singhal
06-May-2022 06:11 PM
Thanks
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